Monday 31 March 2014

वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए योजनाएं और सुविधाएं



 विश्‍वभर में बुजुर्गों की जनसंख्‍या में उल्‍लेखनीय वृद्धि के साथ जनसांख्यिकीय क्रांति का दौर चल रहा है। संयुक्‍त राष्‍ट्र के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 तक 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों की जनसंख्‍या बढ़कर 1.20 अरब हो जाएगी
और वर्ष 2050 तक यह दो अरब हो जाएगी। आज सभी बुजुर्ग लोगों का दो-तिहाई हिस्‍सा विकासशील दुनिया में निवास कर रहा है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में 60 वर्ष से उपर के 7.70 करोड़ लोग थे, जो देश की कुल जनसंख्‍या का 7.5 प्रतिशत है। वर्ष 2026 तक यह बढ़कर 12.4 प्रतिशत तक हो जाने का अनुमान है। इस प्रकार की वृद्धि से निश्चित तौर पर बुजुर्ग लोगों के लिए विशेष कार्यक्रम और योजनाओं को तैयार करने और इन मुद्दों का समाधान करने में कई चुनौतियां सामने आएंगी।
      सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय ने जनवरी 1999 में बुजुर्ग लोगों के लिए एक राष्‍ट्रीय नीति की घोषणा की थी। इस नीति के जरिए बुजुर्गों की भलाई सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार की पूरी प्रतिबद्धता की पुष्टि हुई। बुजुर्ग लोगों के लिए राष्‍ट्रीय नीति में बुजुर्गों के लिए सरकार की ओर से सहायता का अनिवार्य रूप से उल्‍लेख किया गया है, ताकि उनके लिए वित्‍तीय और खाद्य सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, आश्रय की जरूरत सुनिश्चित करने के साथ ही उनकी अन्‍य जरूरतों को भी ध्‍यान में रखा जाए। साथ ही, उन्‍हें समान रूप से विकास का भागीदार बनाया जाए और उन्‍हें उत्‍पीड़न और शोषण के विरूद्ध सुरक्षा दी जाए, ताकि उनके जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार के लिए सेवाएं सुनिश्चित हो।
      इस नीति की घोषणा के 13 साल हो चुके हैं। देश में जनसांख्‍यिकीय प्रणाली, सामाजिक आर्थिक स्थितियों और प्रौद्योगिकीय बदलावों को ध्‍यान में रखते हुए सरकार एक नई राष्‍ट्रीय नीति लाने की प्रक्रिया चला रही है। इस नई नीति का मसौदा तैयार हो गया है। नई नीति में बुजुर्गों की समस्‍याओं को विस्‍तृत रूप से शामिल किए जाने की उम्‍मीद है।
सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्री की अध्‍यक्षता में बुजुर्ग लोगों के लिए मौजूदा राष्‍ट्रीय नीति के क्रियान्‍वयन की देखरेख के लिए और सरकार को बुजुर्गों के लिए एक राष्‍ट्रीय बुजुर्ग परिषद के जरिए नीति और कार्यक्रमों को तैयार करने और उन्‍हें कार्यान्वित करने के बारे में सुझाव देने के लिए एक संस्‍थागत प्रणाली स्‍थापित की गई है। पहली बार पांच वर्ष की अवधि के लिए वर्ष 1999 में यह परिषद स्‍थापित की गई थी। इसके बाद वर्ष 2005 में अगले पांच वर्ष की अवधि के लिए इसे पुनर्गठित किया गया। हालांकि इस परिषद की बनावट अधिक व्‍यापक नहीं थी, क्‍योंकि इसमें क्षेत्रीय संतुलन को कायम रखने के लिए अधिक संख्‍या में गैर-सरकारी सदस्‍य शामिल नहीं थे। इसके अलावा इसमें कुछ ऐसे मंत्रालयों अथवा विभागों के प्रतिनिधि शामिल नहीं थे, जो बुजुर्ग लोगों से संबंधित मुद्दे की देखरेख करते हैं। इन मुद्दों के समाधान के लिए इस परिषद को पुनर्गठित किया गया है और इसका नाम बदलकर राष्‍ट्रीय बुजुर्ग नागरिक परिषद रखा गया है। इस आशय का एक प्रस्‍ताव 22 फरवरी, 2011 को भारत के राजपत्र (असाधारण) में प्रकाशित किया गया है।
      संसद की ओर से दिसंबर 2007 में माता-पिता और वरिष्‍ठ नागरिक गुजारा भत्‍ता और कल्‍याण अधिनियम लागू करना एक ऐतिहासिक बदलाव है। इस अधिनियम के जरिए माता-पिता और वरिष्‍ठ नागरिकों का बच्‍चों की ओर से देखभाल करना अनिवार्य बना दिया गया है और जहां कोई बच्‍चे नहीं है, वहां न्‍यायाधिकरणों के द्वारा समुचित रिश्‍तेदारों की ओर से इसे पूरा किया जाना। इस अधिनियम को राज्‍य सरकारों की ओर से कार्यान्वित किया जाना है। यह अधिनियम जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य के लिए लागू नहीं है, जबकि हिमाचल प्रदेश के पास अपना अधिनियम है। शेष सभी राज्‍यों को अपने-अपने राज्‍यों में इसे लागू करने का अनुरोध किया गया है।
      इस अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों के प्रभावकारी कार्यान्‍वयन के लिए राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नियम बनाने, देखभाल अधिकारी नियुक्‍त करने और गुजारा और अपीलीय न्‍यायाधिकरण गठित करने जैसे अनेक कदम उठाने की जरूरत है। मंत्रालय में उपलब्‍ध जानकारी के अनुसार 14 राज्‍यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों ने इस दिशा में जरूरी कदम उठाए हैं।
      सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बुजुर्ग व्‍यक्तियों के जीवन की गुणवत्‍ता सुधारने के दृष्टिकोण से वर्ष 1992 से 'बुजुर्ग व्‍यक्तियों का समन्वित कार्यक्रम' लागू कर रखा है। जिसके अंतर्गत आश्रय, भोजन, चिकित्‍सा और मनोरंजन सुविधाएं आदि उपलब्‍ध कराई जाती हैं। इस योजना के अंतर्गत वृद्धावस्था घर, अल्‍जाइमर बीमारी/पागलपन से ग्रसित व्‍यक्तियों के लिए दिवस देखभाल केंद्र, चलती- फिरती चिकित्‍सा इकाइयां, बुजुर्ग व्‍यक्तियों के लिए फिजीओथेरपी क्‍लीनिक, स्‍कूल और कॉलेजों में बच्‍चों के लिए संवेदीकरण कार्यक्रम और क्षेत्रीय संसाधन और प्रशिक्षण केन्‍द्रों की स्‍थापना करने और उन्‍हें चलाने के लिए सरकारी/ गैर-सरकारी संगठनों/पंचायती राज संस्‍थानों/स्‍था‍नीय संकायों को 90 प्रतिशत तक वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध कराई जाती है। लगभग 550 परियोजनाओं को चलाने और उनका रख-रखाव करने के लिए लगभग 350 गैर-सरकारी संगठनों को प्रत्‍येक वर्ष सहायता प्रदान की जाती है।
      सहायता प्रदान करने वालों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए राष्‍ट्रीय, सामाजिक सुरक्षा संस्‍थान (एनआर्इएसडी), जो सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन एक स्‍वायत्‍तशासी संकाय है, बुजुर्ग व्‍यक्तियों की देख-भाल के लिए एक वर्ष, 6 महीने और एक महीने के पाठ्यक्रम आयोजित कर रहा है। इसके अलावा संस्‍थान देख-भाल करने वालों के लिए अल्‍पकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रख्‍यात संस्‍थानों के साथ सहयोग कर रहा है।
      मंत्रालय की नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए तथा एनआईएसडी की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए मंत्रालय वर्तमान में तीन क्षेत्रीय संसाधन केन्‍द्रों (आरआरटीसी) को सहायता प्रदान करता है। इन केन्‍द्रों में -अनुग्रह नई दिल्‍ली, जो उत्‍तरी राज्‍यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, नाइटिंगेल मेडिकल ट्रस्‍ट बेंगलोर जो दक्षिणी राज्‍यों की मांगों की पूर्ति करता है और समन्वित ग्रामीण विकास एवं शैक्षिक संगठन (ईआरडीईओ) जो पूर्वोत्‍तर राज्‍यों की जरूरतों को पूरा करता है। ये केन्‍द्र आईपीओपी के अंतर्गत सहायता प्राप्‍त करने वाले संगठनों की प्रशिक्षण गतिविधियों और उनके कार्य की निगरानी करने (2) पक्षसमर्थन और जागरूकता पैदा करने (3) माता-पिता और वरिष्‍ठ नागरिक अधिनियम 2007 के अनुरक्षण और कल्‍याण को लागू करने के विशिष्‍ट कार्य के संदर्भ और बुजुर्ग व्‍यक्तियों के लिए राष्‍ट्रीय नीति 1999 तथा वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए अन्‍य कार्यक्रमों और हस्‍तक्षेपों (4) वृद्धावस्‍था देख-भाल के क्षेत्र में कार्य कर रहे संस्‍थानों के आँकड़ों के आधार की देख-भाल करने और (5) मंत्रालय द्वारा समय-समय पर अनुसंधान और ऐसे ही सौंपे गए  अन्‍य कार्य करते हैं।
      केन्‍द्रीय मंत्रालयों ओर विभागों, राज्‍य सरकारों के प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों और अन्‍य अनेक भागीदारों के सहयोग से वृद्ध लोगों के लिए जागरूक समाज की स्‍थापना करना आज समय की जरूरत बन गया है।

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