Monday 31 March 2014

भारत में बच्चे


भारत में बच्चे 
(V.K.Singh Director Excellent Civil Academy 9355602224)
भारत की जनसंख्या में 2001 से 2011 के दशक के दौरान जहां 181 मिलियन की बढोतरी दर्ज की गई है वहीं इसी अवधि के दौरान 0-6 आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 5.05 मिलियन कम हुई है। यह गिरावट लड़कों के मामले में 2.06 मिलियन और लड़कियों के मामले में 2.99 मिलियन है।
कुल जनसंख्या में 2001 की जनगणना के मुकाबले 6 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों की संख्या में जहां 2011 में 2.8 अंकों की गिरावट देखी गई, वहीं लड़कियों के मामले में इसी आयु वर्ग में यह गिरावट ज्या दा थी।
देशभर में लिंगानुपात के मामले में सुधार दिखाई दे रहा है जबकि बच्चों के मामले में गिरावट जान पड़ती है। 1991-2011 की अवधि में बच्चोंद का लिंगानुपात 945 से घटकर 914 पर गया।
• 2011 की जनगणना के अनुसार देश भर में बच्चोंा के लिंगानुपात में खतरनाक ढंग से गिरावट देखी गई। (<900) सबसे ज्या दा उत्तररप्रदेश में (899) जबकि बाल लिंगानुपात सबसे कम हरियाणा में (830) देखा गया। कुछ राज्योंा में स्थिति बेहतर थी (>=950) पश्चिम बंगाल में (950) सबसे ज्या दा और मिजोरम में (971) सबसे कम थी।
ग्रामीण भारत में (919) शहरी इलाकों के मुकाबले स्थिति कुछ बेहतर थी (17अंक)
• 2001 की तुलना में बाल लिंगानुपात के सबसे कम वर्ग वाले जिलों की संख्या (<=850) ग्रामीण इलाकों में बढ़ी जबकि 2011 में इस वर्ग के जिलों की संख्याज में गिरावट देखी गई।
वर्ष 2000-2005 की तुलना में जहां लिंगानुपात में लगातार गिरावट आई (892 से 880) वहीं 2005-10 की अवधि में कुछ सुधार (892 से 905) देखा गया।
कुछ प्रमुख राज्यों में 2008-10 की एसआरएस के अनुसार पंजाब में जन्म के समय लिंगानुपात (832) सबसे कम था। इस मामले में दूसरे नम्बनर पर हरियाणा (848) और सबसे ऊपर छत्तीतसगढ़ (985) है। इसके बाद केरल (966) का नम्बर है।
सेक्स् रेश्यो) ऐट बर्थ (जन्म( के समय लिंगानुपात) के मामले में अगर 2002-04 और 2008-10 की तुलना करें, तो तमिलनाडु में गिरावट (19 अंक) जबकि उड़ीसा में (6 अंक) रही। अन्या राज्यों में इस अवधि में सुधार दिखाई दिया।
जिन राज्यों ( संघ शासित प्रदेशों) में 2007 तक जन्मह-मृत्यु0 दर्ज कराने का स्तजर 100 प्रतिशत रहा उनके नाम हैं- अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, तमिलनाडु, चंडीगढ़, लक्षदीप और पुडुचेरी।
वर्ष 2010 के सैंपल रजिस्ट्रे्शन सिस्टशम में अनुमान लगाया गया कि एक वर्ष से कम आयु वाले शिशुओं की मृत्युर दर 14.5 प्रतिशत रही।
तमिलनाडु में कुल मौतों की तुलना में शिशु मृत्यु दर काफी ज्यामदा यानी 21.8 प्रतिशत रही।
राष्ट्री स्तंर पर कुल मौतों की तुलना में शिशु मृत्यु‍ दर का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 9.7 प्रतिशत रहा।
• 2010 में कुल शिशु मृत्युप दर राष्ट्रीनय स्त्र पर 69.3 प्रतिशत रही। जिन बड़े राज्यों में नवजात शिशुओं की मृत्यु1 दर अधिक रही उनमें यह जम्मू-कश्मी में सबसे ज्या9दा और केरल 53.2 प्रतिशत) में सबसे कम थी।
• 2010 में राष्ट्री स्तुर पर प्रसव बाद शिशु मृत्यु दर 33 प्रतिशत थी जो शहरी इलाकों में 19 और ग्रामीण क्षेत्रों में 36 थी। यह मध्याप्रदेश में सबसे ज्यादा (44) और केरल में सबसे कम (7) दर्ज की गई।
राष्ट्रीय स्तर पर 2010 में प्रसव बाद शीघ्र मृत्यु दर 25 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया।
वर्ष 2010 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रसव पश्चात शिशु मृत्युा दर कुल शिशु मृत्युन दर के 53.9 प्रतिशत के बराबर थी।
• 2010 में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीसय स्त पर 47 होने की सूचना मिली, जो ग्रामीण क्षेत्रों में 51 और शहरी इलाकों में 31 थी।
• 1990 में शिशु मृत्यु् दर बालकों के मामले में 78 से घटकर 46 हो गई जबकि बालिकाओं के मामले में यह इसी अवधि के दौरान 81 से 49 पर गई।
सभी प्रमुख राज्यों में बालिकाओं के मामले में शिशु मृत्युस दर बालकों की तुलना में अधिक रही।
हालांकि पिछले वर्षों में शिशु मृत्युम दर के मामलों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर कम हुआ है लेकिन यह अब भी काफी ज्यारदा है।
भारत में सैंपल रजिस्ट्रे शन सिस्टतम (एसआरएस) 2010 के यू5एमआर पर आधारित है और यह वर्ष 2010 में 59 था।
भारत में राष्ट्रीय स्तसर पर किये गए कवरेज इवेल्यू शन सर्वे 2009 के अनुसार 12 से 23 महीनों की आयु वर्ग के बच्चों को पूरा इम्यू्नाइजेशन (रोग मुक्तिकरण टीका) मिला। शहरी इलाकों में यह 67.4 प्रतिशत बच्चों को जबकि ग्रामीण इलाकों में 58.5 प्रतिशत बच्चोंश को उपलब्ध कराया गया।
• 12 से 23 महीनों के आयु वर्ग के 62 प्रतिशत बालकों को पूरा इम्यूचनाइजेशन टीका मिला, जबकि ऐसा टीका पाने वाली बालिकाओं की संख्या् लगभग 60 प्रतिशत है।
जहां पहले जन्मी लेने वाले 67.4 प्रतिशत बच्चों को रोग मुक्ति के सभी टीके लगवाये गये जबकि चौथे नम्बपर पर या इसके बाद जन्मल लेने वाले सिर्फ 40.4 प्रतिशत बच्चों को यह टीके लगवाये गये।
• 12 से 23 महीनों के आयु वर्ग के बच्चों की 12 साल तक शिक्षा पाने वाली माताओं ने अपने 76.6 प्रतिशत बच्चों को रोग मुक्ति के सभी टीके लगवाये जबकि अशिक्षित माताओं ने केवल 45.3 प्रतिशत बच्चों को ऐसे टीके लगवाये।
समाज से सबसे समृद्ध वर्ग के एक वर्ष से कम आयु के लगभग 75.5 प्रतिशत बच्चोंक को सभी टीके लगवाये गये, जबकि समाज के सबसे कम आय वर्ग के 47.3 प्रतिशत बच्चोंर को ऐसे टीके लगे।
• 12 से 23 महीनों की आयु वर्ग वाले बच्चोंब को रोग मुक्ति के सभी टीके लगवाने की संख्या (87.9 प्रतिशत) सबसे ज्यासदा गोआ में थी, दूसरे नम्ब पर सिक्किम (85.3 प्रतिशत), पंजाब (83.6 प्रतिशत) और केरल (81.5 प्रतिशत) है। ऐसा करने वाले सबसे कम माता-पिता अरुणाचल प्रदेश में (24.8 प्रतिशत) रहते हैं।
• 2008-09 के दौरान लगाये गये अनुमान के अनुसार वर्ष 2009 में एचआईवी ग्रस्तल लोगों की संख्या में गिरावट आई। 2008 में जहां यह 24.42 लाख थी वहीं 2009 में 23.95 लाख रह गई।
अनुमानों के अनुसार देश में 22.5 प्रतिशत बच्चेी जन्म के समय 2.5 किलोग्राम (कम) वजन के होते हैं। यह संख्या शहरी इलाकों में 60 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 25 प्रतिशत थी।
एनएफएचएस 3 के अनुसार पांच वर्ष आयु तक के 48 प्रतिशत बच्चोंम की लंबाई काफी कम होती है, जिससे पता चलता है कि वे कुपोषण के शिकार हैं।
• 1998-99 और 2005-06 के बीच तीन वर्ष तक की आयु वाले बच्चों के वज़न और लंबाई कम रहने के अनुपात में कमी आई।
एनएफएचएस 3 (2005-06) के परिणामों से संकेत मिलते हैं कि बाद में पैदा होने वाले बच्चों में कुपोषण ज्यालदा होता है।
ग्रामीण भारत में पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के मामले में कुपोषण दर ज्यादा है।
औसत से कम भार वाली माताओं के बच्चों में कुपोषण अधिक पाया जाता है।
जिन राज्योंा में पांच वर्ष आयु वर्ग वाले 50 प्रतिशत से ज्याजदा बच्चे कम वज़न के हैं उनमें मध्य प्रदेश (60 प्रतिशत), झारखंड (56.5 प्रतिशत) और बिहार (55.9 प्रतिशत) शामिल हैं।

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